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इस पोस्ट में नवा रायपुर स्थित पुरखौती मुक्तांगन की बात करेंगे। पुरखौती मुक्तांगन एक बड़ा सा उद्यान है जिसमें छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति को दिखाया गया है। 200 एकड़ में फैले इस उद्यान का उद्घाटन 7 नवंबर 2006 को पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था। पुरखौती मुक्तांगन में बस्तर जनजाति की जीवनशैली, वहां के मंदिर, छत्तीसगढ़ी लोक नृत्य, लोक कला और मैनपाट का बौद्ध विहार आकर्षण का केंद्र है।
पुरखौती मुक्तांगन का एंट्री गेट। |
पुरखौती मुक्तांगन गेट से अंदर जाने पर सबसे पहले बैगा चौक देखने को मिलता है। इस चौक के माध्यम से पर्यटकों को यह बताने की कोशिश है कि किस तरह आदिवासी समुदाय के लोग जानवरों का शिकार करते हैं। चौक में आदिवासियों को ग्रुप में आग और तीर धनुष की मदद से भालू का शिकार करते देखा जा सकता है। इसमें दो लोग आग से भालू को डराकर घेरने का प्रयास करते हैं वहीं दो लोग तीर-धनुष से उसका शिकार करते हैं।
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थोड़ा आगे बढ़ने पर पाथवे के दोनों ओर दो लोग आदिवासी पारंपरिक वेशभूषा में नजर आते हैं जो ढोल बजाते हुए दिखते हैं। इन स्टाच्यू के सामने बैठने के लिए बेंच लगे हुए हैं।
छत्तीसगढ़ चौक
पुरखौती मुक्तांगन में छत्तीसगढ़ चौक देखने को मिलता है। सर्कल सेप में बने इस चौक के चारों तरफ 36 खंबे देखने को मिलते हैं। चौक के बीच में एक बड़ी सी प्रतिमा लगी है जो वेलकम की मुद्रा में दोनों हाथ जोड़े हुए है। यहां अगल अलग पेशे से जुड़े लोगों को भी दिखाया गया है। इसमें लोहार, कुम्हार आदि हैं।
आमचो गांव
छत्तीसगढ़ी चौक से आगे आमचो गांव को बसाया गया है। इसमें आमचो बस्तर की झलक दिखती है। आमचो बस्तर में जतरा गुड़ी, मुरिया लोन, कोया लोन, अबूझमाड़िया लोन, घानासार, माता गुड़ी, घोटुल, नारायण पाल मंदिर, पोलंग मट्टा, बारसूर गणेश, ढोलकल गणेश, बस्तर दशहरा, सिंह डेउढ़ी द्वार, उरुसकल, फूलरथ और धुरवा होलेक बना हुआ है। जो लोग बस्तर में बने आमचो गांव को नहीं देख पाए हैं उनके लिए पुरखौती मुक्तांगन बेस्ट जगह है।
बस्तर दशहरा
बस्तर में 75 दिनों तक चलने वाला बस्तर दशहरा पुरखौती मुक्तांगन में देखने को मिलता है। सर्कल आकार में बने वॉल के अंदर वाले हिस्से में सुंदर चित्रकारी कर बस्तर दशहरा में निभाई जाने वाली हर परंपरा को दिखाया गया है। इसमें रथ यात्रा चित्रण है। इसमें बताया गया है कि कैसे रथ बनाने के लिए जंगल से लकड़ी लाई जाती है और उसे आकर देकर रथ का निर्माण किया जाता है। दशहरा में पूजा के दौरान रथ खींचने की परंपरा को दिखाया गया है।
बस्तर दशहरा रथ
पुरखौती मुक्तांगन में एक जगह बस्तर दशहरा के दौरान बनाए जाने वाले लकड़ी के रथ भी देखने को मिलते हैं। यहां ऐसे दो रथ बनाकर रखे गए हैं। यह हूबहू वैसे ही बने हुए हैं जैसे कि बस्तर दशहरा में बनाए जाते हैं।
प्राचीन मंदिर
पुरखौती मुक्तांगन में छत्तीसगढ़ के प्राचीन मंदिर भी देखने को मिलते हैं। इसमें बस्तर का नारायण पाल मंदिर, गणेश मंदिर, कवर्धा का भोरमदेव मंदिर, ताला गांव के भगवान शिव, दंतेवाड़ा का दंतेश्वरी मंदिर सहित कई प्राचीन मंदिर शामिल हैं। पुरखौती मुक्तांगन में बने इन मंदिरों को बनाते समय इस बात का ध्यान रखा गया है कि यह देखने में ओरिजन मंदिर जैसे ही दिखें।
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नारायण पाल मंदिर
प्राचीन नारायण पाल मंदिर। |
आमचो गांव में बस्तर का प्राचीन नारायण पाल मंदिर का मॉडल बना हुआ है। यह मंदिर देखने में बहुत सुंदर है। मंदिर के गर्भ गृह में जाने के लिए छोटा सा द्वार बना हुआ है। अंदर में अंधेरा रहता है। इस प्राचीन मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में नाग राजाओं द्वारा किया गया था।
ढोलकल गणेश
बस्तर में करीब 30 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित ढोलकल गणेश की प्रतिमा पुरखौती मुक्तांगन में देखने को मिलती है। प्रतिमा देखकर लगता ही नहीं कि हम रायपुर के पुरखौती मुक्तांगन में हैं, ऐसा लगता है कि हम बस्तर की सैर पर निकले हैं।
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बारसूर गणेश
पुरखौती मुक्तांगन में बारसूर गणेश के भी दर्शन होते हैं। यहां एक जगह पर दो गणेश की छोटी-बड़ी प्रतिमा रखी गई है।
घोटुल
पुरखौती मुक्तांगन में घोटुल का निर्माण किया गया है। इसकी बाहरी दीवारों पर आकर्षक चित्रकारी की गई है। घर के दरवाजे पर भी बहुत सुंदर कलाकारी देखने को मिलती है। यह बस्तर के आदिवासी माडिया जनजाति का पारंपरिक और सांस्कृतिक केंद्र कहलाता है। खपड़े की छत से निर्मित इस घर को लकड़ी के डंडो से घेर दिया जाता है। इसके आस-पास खूब हरियाली होती है।
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घानासार
पुरखौती मुक्तांगन में घानासार भी देखने को मिलता है। इसके माध्यम से यह दिखाने की कोशिश की गई है कि कैसे आदिवासी लोहे के औजार बनाते थे। यहां पर औजार बनाते आदिवासियों की स्टाच्यू रखी गई है।
जातरा गुड़ी
आमचो बस्तर में जातरा गुड़ी देखने को मिलता है। यह स्थान आदिवासियों के देवी-देवता का निवास स्थान कहलाता है। यहां पर बलि देने की परंपरा होती है।
कोरिया पैलेस
पुरखौती मुक्तांगन में कोरिया पैलेस देखने को मिलता है। सामने की ओर से इस महल को कोरिया पैलेस जैसा ही बनाया गया है। अभी इसके रंग-रोगन का काम नहीं हुआ है। इस महल के ऊपरी भाग से पुरखौती मुक्तांगन का बड़ा सा एरिया दिखाई देता है।
छत्तीसगढ़ का बुद्ध विहार
पुरखौती मुक्तागंन में छत्तीसगढ़ का बुद्ध विहार भी बना हुआ है। यह मैनपाट में स्थित बुद्ध विहार की कॉपी है। यहां आने से लगता है कि सचमूच में मैनपाट स्थित बुद्ध विहार घूम रहे हैं।
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विभिन्न पारम्परिक नृत्य
पुरखौती मुक्तांगन में छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदाय द्वारा किए जाने वाले पारंपरिक नृत्य की झलक भी दिखाई देती है। इसमें पंथी नृत्य, सुआ नृत्य, राऊत नृत्य, शैला नृत्य व करमा नृत्य की झलक दिखाई देती है। अलग-अलग वेशभूषा में ग्रुप में नृत्य करते स्टाच्यू यहां आने वालों का मन मोह लेते हैं।
मुखौटा
पुरखौती मुक्तांगन में एक हिस्से में कई तरह के मुखौटे लगे हुए हैं। यह देखने में बहुत आकर्षक हैं। इसमें प्रमुख रूप से ढोलक बजाते, गेड़ी करते मुखौटे नजर आते हैं। एक हिस्से में केवल फेस के मुखौटे नजर आते हैं।
पुरखौती मुक्तांगन में एंट्री टिकट
पुरखौती मुक्तांगन में एंट्री के लिए टिकट लेना जरूरी है। इसके बिना आपको एंट्री नहीं दी जाएगी। मेन गेट के पास बने टिकट काउंटर से आप टिकट खरीद सकते हैं। पर पर्सन 30 रुपए टिकट दर तय है। पार्किंग के लिए यहां कोई शुल्क नहीं लिया जाता। आप मेन गेट से पहले खाली स्थान में अपनी कार या बाइक को पार्क कर सकते हैं।
पुरखौती मुक्तांगन सप्ताह में एक दिन बंद
नवा रायपुर स्थित पुरखौती मुक्तांगन सोमवार को पर्यटकों के लिए बंद रहता है। वैसे पूरे छत्तीसगढ़ में पर्यटकों के लिए बनाए गए स्थलों में सोमवार को एंट्री नहीं दी जाती है। कई जगहों पर सोमवार के साथ ही सरकारी छुट्टी के दिन में भी पर्यटकों की एंट्री बंद रहती है। सोमवार को छोड़कर बाकी दिन पुरखौती मुक्तांगन पर्यटकों के लिए खुला रहता है।
रायपुर रेलवे स्टेशन से पुरखौती मुक्तांगन की दूरी
रायपुर रेलवे स्टेशन से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर नवा रायपुर में पुरखौती मुक्तांगन स्थित है। रायपुर शहर सहित पूरे छत्तीसगढ़ से सड़क मार्ग द्वारा आसानी से नवा रायपुर पुरखौती मुक्तांगन तक पहुंचा जा सकता है। आप बस, कार, टैक्सी, ऑटो या स्वयं के साधन से यहां तक पहुंच सकते हैं। नए बने भाटागांव बस स्टैंड से पुरखौती मुक्तांगन की दूरी मात्र 22 किलोमीटर है। ट्रेन के माध्यम से भी रायपुर रेलवे स्टेशन तक पहुंचा जा सकता है, जहां से पुरखौती मुक्तांगन तक पहुंचने के लिए कई साधन उपलब्ध हैं। रायपुर में एयरपोर्ट की सुविधा है जो पुरखौती मुक्तांगन से करीब 13 किलोमीटर की दूरी पर है।
राजधानी रायपुर में घूमने की जगह
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कई जगहें हैं जहां आप पिकनिक या घूमने का प्लान बना सकते हैं। खारुन नदी के किनारे पर स्थित रायपुर शहर प्रदेश का सबसे बड़ा शहर है। यहां घूमने के लिए, स्वामी विवेकानंद सरोवर जिसे बूढ़ा तालाब भी कहते हैं, स्वामी विवेकानंद आश्रम, दूधाधारी मठ मंदिर, हाटकेश्वर महादेव मंदिर, तेलीबांधा तालाब, गांधी उद्यान, महामाया मंदिर, राम मंदिर, शादाणी दरबार, इस्कॉन मंदिर, बालाजी मंदिर, बंजारी माता मंदिर, महाकौशल आर्ट गैलरी, गुरु तेग बहादुर संग्रहालय, लक्ष्मण झूला, नंदन वन जू, कैवल्य धाम, नया रायपुर, एमएम फन सिटी, महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय प्रमुख है।