रायपुर (टुडेन्यूजलैब.कॉम) | वर्षा आधारित कृषि में सिंचाई की समुचित व्यवस्था बहुत आवश्यक है। ताकि फसलों को आवश्यकतानुसार मात्रा में पानी उपलब्ध कराया जा सके। सिंचाई के लिए अधिकतर भू-जल पर ही निर्भरता होती है। लेकिन लगातार भू-जल का दोहन और सिंचाई के साथ अन्य प्रयोजनों के लिए उनका उपयोग भू-जल स्तर को नीचे गिरा रहा है। जिससे गर्मी के मौसम में कई स्थानों में पेयजल की समस्या भी बड़े पैमाने पर उभर के सामने आती है। जिससे निपटने में ऐसी व्यवस्थाएं जरूरी हैं जो दीर्घकाल तक भू-जल को रिचार्ज करने का स्थायी समाधान दे। रायगढ़ जिले में केलो परियोजना और उससे निर्मित नहरों का जाल इस दिशा में काफी कारगर साबित होंगे। सिंचाई, पेयजल और निस्तार के साथ ग्राउंड वाटर रिचार्ज जैसे महत्वपूर्ण उद्देश्य की पूर्ति के लिए सिंचाई विभाग केलो परियोजना का काम पूरी तेजी से पूर्ण करवाने में लगा हुआ है।
तेजी से भू-जल स्तर में गिरावट
कार्यपालन अभियंता पीएचई परीक्षित चौधरी ने बताया कि पिछले कुछ समय में विकासखण्ड पुसौर एवं बरमकेला में भू-जल स्तर में तेजी से गिरावट देखने को मिला है। इस वर्ष विकासखण्ड पुसौर में औसत भू-जल स्तर 26.5 मी.एवं अधिकतम भू-जल स्तर 85 मी.तक जा चुका है। विकासखंड बरमकेला में औसत भू-जल स्तर 28.6 मी.एवं अधिकतम भू-जल स्तर 135 मी. तक जा चुका है। भू-जल स्तर गिरने से विकासखंड पुसौर में लगभग 118 हैण्डपंप एवं बरमकेला में 400 हैण्डपंप बंद हो चुके है। उन्होंने कहा कि इन विकासखण्डों में भू-जल स्तर की वृद्धि के लिये सतही स्त्रोत आधारित सिंचाई की व्यवस्था को बढ़ावा देना जरूरी है। इससे सिंचाई हेतु भू-जल का उपयोग कम होगा एवं भू-जल स्तर में वृद्धि होगी।
बारिश का पानी प्राकृतिक रूप से हमें मिलता है। इसका यदि समुचित प्रबंधन किया जाए तो वह मुश्किल समय में बड़े काम आता है। बांधों का निर्माण इस उद्देश्य से ही किया जाता है कि बारिश के अतिरिक्त जल को व्यर्थ बहने से रोककर उसे संचय किया जा सके, जिसे बाद में नहरों के माध्यम से किसानों को सिंचाई के लिए दिया जा सके। केलो परियोजना के तहत नहरों का निर्माण भी इसी उद्देश्य से किया जा रहा है। जिससे किसानों को सिंचाई के लिए पानी तो मिले ही साथ ही इस पूरे क्षेत्र में ग्राउंड वाटर लेवल भी रिचार्ज होता रहे। इससे आने वाले समय में भू-जल स्तर को मेंटेन कर के रखा जा सके।