Bhoramdev Temple Kawardha Chhattisgarh | जानिए भोरमदेव मंदिर के बारे में | कवर्धा में घूमने की जगह | मण्डवा महल कवर्धा | छेरकी महल कवर्धा | लक्ष्मण झूला कवर्धा

Hello Everyone
इस पोस्ट में कवर्धा से करीब 18 किलोमीटर की दूरी पर चौरागांव में स्थित भोरमदेव मंदिर की बात करेंगे। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर करीब 1000 वर्ष पुराना है। 7वीं से 11वीं शताब्दी के बीच बने भोरमदेव मंदिर में मध्यप्रदेश के खजुराहो मंदिर और उड़ीसा के सूर्य मंदिर की झलक दिखती है। मंदिर को इसी कारण छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है।

भोरमदेव मंदिर।


मंदिर की दीवारों में कामुक मुद्रा में कई मूर्तियां देखने को मिलती हैं। नागर शैली में बना यह मंदिर पूर्व मुखी है। सतपूड़ा पर्वत श्रृंखला के बीच पांच फुट ऊंचे आधार पर बने मंदिर में तीन प्रवेश द्वार हैं। तीनों द्वार से अंदर जाने पर मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग के दर्शन होते हैं। शिवलिंग के अलावा यहां भगवान विष्णु और उनके कई अवतार हैं। इसमें नरसिंग, वामन, कृष्ण, नटराज आदि हैं। दो भागों में बंटे मंदिर में 16 स्तंभ देखने को मिलते हैं, जिन पर मंदिर की छत टिकी हुई है। इनमें 4 स्तंभ बीच में और बाकी 12 स्तंभ किनारे पर स्थित हैं। मंदिर देखने में बहुत सुंदर और कलात्मक है। सुबह और शाम में मंदिर में भव्य आरती होती है।

मंदिर की दीवारों पर कई मूर्तियां

भोरमदेव मंदिर की बाहरी दीवारों पर कामुक मुद्रा में 54 मूर्तियां देखने को मिलती हैं। इन्हें प्रेम और सुंदरता का प्रतीक माना जाता है। यहां संभोग के अलावा खुशहाल जीवन के प्रतीक की अन्य मूर्तियां भी देखने को मिलती हैं। मंदिर की दीवारों पर घोड़े, हाथी और देवी-देवताओं के कई रूप दिखते हैं। भोरमदेव मंदिर के बगल में ईंट और पत्थर से निर्मित बूढ़ा महादेव का मंदिर है। इसमें भी शिवलिंग स्थापित है। इस मंदिर की खासियत है कि यहां निसंतान दंपती संतान सुख के लिए मन्नतें मांगते हैं।

भोरमदेव मंदिर परिसर में कुछ और मंदिर

भोरमदेव मंदिर के पास कुछ और मंदिर हैं। इनमें हनुमान मंदिर, काली मंदिर और काल भैरव मंदिर प्रमुख है। हनुमान मंदिर में भगवान की नृत्य करती हुई प्रतिमा विराजित है। भोरमदेव मंदिर परिसर में काले पत्थर से निर्मित कई शिवलिंग, नंदी और अन्य मूर्तियां देखने को मिलती हैं। भोरमदेव मंदिर प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ है। चारों ओर घने जंगल और पहाड़ देखने को मिलते हैं।

भोरमदेव मंदिर के सामने गार्डन

भोरमदेव मंदिर के सामने एक बड़ा सा गार्डन बना हुआ है। गार्डन को बहुत सुंदर ढंग से बनाया गया है। यहां आप सफर के थकान को दूर कर सकते हैं। परिवार या दोस्तों के साथ यहां पिकनिक भी मना सकते हैं। गार्डन में एंट्री के लिए बना गेट बहुत शानदार है। गेट से एंटर कर आप गार्डन होते हुए मंदिर तक पहुंच सकते हैं। भोरमदेव मंदिर पहुंचने के लिए गार्डन के अलावा दूसरा रास्ता भी है।

मंदिर परिसर में पुरातत्व संग्रहालय

भोरमदेव मंदिर परिसर में पुरातत्व संग्रहालय भी बना हुआ है। संग्रहालय तीन भागों में बंटा हुआ है। इसमें फर्स्ट गैलरी, सेकेंड गैलरी और थर्ड गैलरी है। भोरमदेव मंदिर के आस-पास से मिली मूर्तियों को इस संग्रहालय में रखा गया है। यह मूर्तियां करीब 1000 साल पुरानी हैं। संग्रहालय में रखी मूर्तियों की जानकारी भी साथ में लिखी गई है।

मंदिर परिसर के बाहर बड़ा सा तालाब

मंदिर परिसर के बाहर में बड़ा सा तालाब है। तालाब में बोटिंग की सुविधा है। तालाब के दूसरे ओर लक्ष्मण झूला है। भोरमदेव मंदिर आएं तो लक्ष्मण झूला भी जरूर देखें। यहां पर फोटोशूट भी कर सकते हैं। भोरमदेव मंदिर परिसर के बाहर में पूजा सामग्री के कई स्टॉल लगे हुए हैं। यहां से आप प्रसाद व अन्य चीज खरीद सकते हैं।

तीन दिवसीय भोरमदेव महोत्सव

भोरमदेव में भोरमदेव महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इस महोत्सव से मंदिर की पहचान देश से लेकर विदेशों तक में फैली है। राज्य सरकार द्वारा मार्च के अंतिम सप्ताह या अप्रैल के शुरुआत में भोरमदेव महोत्सव का आयोजन किया जाता है। तीन दिनों तक चलने वाले महोत्सव में राज्य की संस्कृति और कला देखने को मिलती है। महोत्सव में देश के दूसरों राज्यों से आए कलाकार भी परफॉर्म करते हैँ। कोरोना के कारण 2 सालों से भोरमदेव महोत्सव का आयोजन नहीं किया जा रहा है। सावन में भी यहां बहुत बड़ा मेला लगता है। लाखों श्रद्धालू महादेव पर जलाभिषेक और दर्शन के लिए यहां आते हैं।

मण्डवा महल, कवर्धा

मण्डवा महल, कवर्धा।


भोरमदेव मंदिर से दक्षिण में करीब एक किलोमीटर की दूरी पर मण्डवा महल स्थित है। यह स्मारक एक प्राचीन शिव मंदिर है। मंदिर का गर्भगृह मंदिर के धरातल से डेढ़ मीटर गहरा है, जिसमें शिवलिंग स्थापित है। मंदिर में 16 स्तंभ हैं। 16 अंकों को हम शुभ मानते हैं। जैसे 16 श्रृंगार, 16 संस्कार और 16 सोमवार का उपवास। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय में भी वास्तु को ध्यान में रखकर मंदिर का निर्माण किया गया होगा। मंदिर की खास बात है कि गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग पर जितना भी पानी डाला जाता है वह पूरा का पूरा धरातल में समा जाता है।    

छेरकी महल, कवर्धा

छेरकी महल, कवर्धा।


मण्डवा महल के पास ही छेरकी महल भी स्थित है। यह भी एक प्राचीन शिव मंदिर है। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के चारों तरफ खेत हैं। छेरकी नाम क्यों पड़ा के पीछे का रहस्य है कि यह मंदिर एक खुले जगह में है। ऐसा मानना है कि बहुत पहले इस खुले जगह में पशुओं को रखा जाता होगा। छेरी का मतलब बकरी होता है। ऐसे में मंदिर का नाम छेरकी महल पड़ा होगा।

कवर्धा में घूमने की जगह

कर्वधा में भोरमदेव मंदिर, मण्डवा महल और छेरकी महल के अलावा भी बहुत कुछ देखने और घूमने के लिए है। इसमें चिल्फी घाटी, वॉच टावर, भोरमदेव अभयारण्य, रानीधरा वॉटरफॉल, कवर्धा पैलेस और सरोदा डैम प्रमुख है।

रायपुर से भोरमदेव मंदिर की दूरी

राजधानी रायपुर से करीब 125 किलोमीटर, बिलासपुर से 110 किलोमीटर  और कवर्धा से करीब 18 किलोमीटर की दूरी पर चौरागांव में भोरमदेव मंदिर स्थित है। रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग से आसानी से सड़क मार्ग द्वारा भोरमदेव मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। आप बस, कार, टैक्सी या बाइक से मंदिर तक पहुंच सकते हैं। रायपुर रेलवे स्टेशन पास में है। दूसरे राज्यों से आने वालों के लिए रायपुर एयरपोर्ट की सुविधा है, जो मुंबई, दिल्ली, विशाखापट्‌टनम और कोलकाता से जुड़ा हुआ है।

यह भी पढ़ें:- Danteshwari Temple Dantewada
यह भी पढ़ें:- Maa Bamleshwari Mandir Dongargarh
यह भी पढ़ें:- Laxman Mandir Sirpur

एक टिप्पणी भेजें

Oops!
It seems there is something wrong with your internet connection. Please connect to the internet and start browsing again.