Danteshwari Temple Dantewada Chhattisgarh | जानिए दंतेश्वरी मंदिर के बारे में | शक्तिपीठ के रूप में देश-विदेश में है मंदिर की पहचान | दर्शन के लिए विशेष वस्त्र की जरूरत

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इस पोस्ट में दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय में स्थित दंतेश्वरी मंदिर की बात करेंगे। दंतेवाड़ा के डंकिनी और शंखिनी नदी के संगम पर दंतेश्वरी मां का मंदिर है। यह एक प्राचीन मंदिर है, जो 32 लकड़ी के खंभों पर टिका हुआ है। मंदिर के गर्भगृह में दंतेश्वरी मां की छह भुजाओं वाली प्रतिमा विराजित है। दाएं हाथों में खड़ग, त्रिशूल और शंख है वहीं बाएं हाथों में घंटी, पदक और राक्षस के बाल धारण किए हुए हैं। 

दंतेश्वरी माता।


काले ग्रेनाइट से बनी मां की प्रतिमा बहुत भव्य है। माता के सिर के ऊपर छत्र लगा है जो चांदी से बना है। मंदिर में माता के चरण चिन्ह भी मौजूद हैं। दंतेश्वरी मां बस्तर की कुलदेवी हैं। दंतेश्वरी मंदिर छत्तीसगढ़ में बहुत प्रसिद्ध है। भारत सहित दुनिया में दंतेश्वरी मंदिर की पहचान 52वें शक्तिपीठ के रूप में है। 

भूनेश्वरी माता का मंदिर

मां के मंदिर के पास ही भूनेश्वरी माता का भी मंदिर है। कहा जाता है कि भूनेश्वरी माता दंतेश्वरी मां की छोटी बहन हैं। भूनेश्वरी देवी को मालवी माता के नाम से भी जाना जाता है। इन दोनों मंदिरों में एक समानता है। दंतेश्वरी माता और भूनेश्वरी माता की आरती एक साथ की जाती है और भोग भी एक साथ ही लगाया जाता है। आठ भुजाओं वाली भूनेश्वरी माता की प्रतिमा अद्भूत है। मंदिर के बाहर और कई प्राचीन प्रतिमाएं स्थापित हैं। डंकिनी और शंकिनी नदी के संगम पर भैरव बाबा का मंदिर है। मंदिर में भैरव बाबा के अलावा कई प्राचीन शिवलिंग स्थापित हैं।            

दंतेश्वरी मंदिर का इतिहास

करीब 850 साल पहले राजा अन्नमदेव ने दंतेश्वरी और भूनेश्वरी मंदिर का निर्माण करवाया था। 14वीं शताब्दी में वारंगल से आए पांडव अर्जुन कुल के राजाओं ने मंदिर का पहली पर जीर्णोद्वार करवाया। दूसरी बार मंदिर का जीर्णोद्वार 1932-33 में तत्कालीन बस्तर महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने कराया था। मंदिर के प्रवेश द्वारा के बाहर बजरंगी बली की बड़ी सी मूर्ति देखने को मिलती है। बाहर में ही पूजा सामग्री के लिए कई स्टॉल लगे हुए हैं। परिवार और दोस्तों के साथ आप माता के दर्शन का प्लान बना सकते हैं।

चार भागों में बंटा है दंतेश्वरी मंदिर

दंतेश्वरी मंदिर के निर्माण में लकड़ी का उपयोग ज्यादा हुआ है। मंदिर को चार भागों में बनाया गया है। इसमें पहला सभा मंडप, दूसरा मुख्य मंडप, तीसरा महा मंडप और चौथा गर्भ गृह है। मुख्य मंडप में दुर्लभ और अति प्राचीन प्रतिमाएं देखने को मिलती हैं। इनमें भागवान गणेश, विष्णु, शिव, नंदी आदि हैं। यह देखने में बहुत सुंदर, अद्भूत और अलौकिक हैं। गर्भ गृह के प्रवेश द्वारा पर दो द्वारपाल खड़े मुद्रा में हैं। चार हाथ युक्त द्वारपाल के हाथों में सर्प, गदा है। महा मंडप में भगवान गणेश की बहुत प्राचीन भव्य प्रतिमा देखने को मिलती है। यह प्रतिमा काले पत्थर से बनी है।   
 

दंतेश्वरी मंदिर भारतीय परिधान में प्रवेश

दंतेश्वरी माता के दर्शन को आने वाले श्रद्धालुओं को मंदिर में तभी प्रवेश दिया जाता है जब वो भारतीय परिधान में होते हैं। धोती, लुंगी और साड़ी में ही श्रद्धालू मंदिर में आ-जा सकते हैं। वहीं, जींस और फूल पैंट में श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाता है। माता के दर्शन को आए ऐसे श्रद्धालुओं के लिए मंदिर की ओर से फ्री में धोती की सुविधा प्रदान की जाती है। इसे पहनकर वो मंदिर में प्रवेश कर माता के दर्शन कर सकते हैं। मंदिर में चमड़े का सामान ले जाना सख्त प्रतिबंधित है। वर्तमान में कोविड को देखते हुए श्रद्धालू जिस वेश-भूषा में आ रहे उन्हें उसी वेश-भूषा में माता का दर्शन करने दिया जा रहा है। 

मंदिर के प्रवेश द्वारा पर गरुड़ स्तंभ

मंदिर के प्रवेश द्वारा के सामने गरुड़ स्तंभ। 


दंतेश्वरी मंदिर के प्रवेश द्वार पर गरुड़ स्तंभ है। मान्यता है कि जो श्रद्धालू मंदिर के प्रवेश द्वार की तरफ मुंह करके दोनों हाथों को पीछे करते हुए गरुड़ स्तंभ को पूरी पकड़ लेते हैं (जिसमें स्तंभ उनकी दोनों हाथों में समा जाता है) तो माता उनकी मुरादें पूरी करती हैं। यहां आने वाले ज्यादातर भक्त ऐसा करते हैं। मंदिर के बगल में गार्डन बना हुआ है। 

नवरात्र में भक्तों की भीड़

दंतेश्वरी मंदिर में नवरात्र में भक्तों की बहुत भीड़ होती है। दर्शन के लिए मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी लाइन लगती है। माता के दर्शन को  भक्त छत्तीसगढ़ सहित देश-विदेश से दंतेवाड़ा आते हैं। नवरात्र में यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। ज्योति कलश की स्थापना भी की जाती है। भक्तों की भीड़ को देखते हुए प्रशासन की ओर से विशेष सुरक्षा के इंतजाम किए जाते हैं। जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए जाते हैं। अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती भी की जाती है।
      

नौ दिवसीय फाल्गुन मड़ई 

दंतेश्वरी मंदिर में होली से 10 दिन पहले फाल्गुन मड़ई का आयोजन किया जाता है। मेले में आस-पास के गांवों से हजारों आदिवासी शामिल होते हैं। नौ दिवसीय इस कार्यक्रम में आदिवासी संस्कृति के साथ कई तरह के वाद्य यंत्र देखने को मिलते हैं। मंदिर से हर दिन मां दंतेश्वरी की डोली नगर भ्रमण के लिए निकलती है। डोली के साथ करीब 250 देवी-देवता भी होते हैं। भ्रमण के दौरान नाच मंडली की रस्म होती है। जहां जहां से डोली गुजरती है श्रद्धालू देवी के दर्शन कर मन्नतें मांगते हैं।
 

दंतेश्वरी मंदिर के पीछे कई किंवदंती और कहानियां

दंतेश्वरी मंदिर को लेकर कई किंवदंती और कहानियां प्रचलित हैं। उनमें प्रमुख कहानी देवी सती की है। कहानी के अनुसार राजा दक्ष अपने यज्ञ में भगवान शंकर को नहीं बुलाते हैं तो यह देख देवी सती बहुत दुखी होती हैं और अपने पिता के यज्ञ कुंड में कूदकर अपनी जान दे देती हैं। भगवान शंकर को जब इसकी जानकारी होती है तो वह क्रोध में सती के शव को गोद में उठाकर ब्रह्मांड में घूमने लगते हैं। भगवान शिव को क्रोधित देख भगवान विष्णु अपने चक्र से देवी सती के शव को कई हिस्सों में बांट देते हैं। इस दौरान देवी सती के अंग जहां जहां गिरते हैं उन जगहों को शक्तिपीठों के रूप में जाना जाने लगा। दंतेवाड़ा में देवी सती के दांत गिरे थे। इसी कारण इस जगह को दंतेवाड़ा के नाम से जाना जाता है।

रायपुर से दंतेश्वरी मंदिर की दूरी

राजधानी रायपुर से करीब 380 किलोमीटर की दूरी पर दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय में दंतेश्वरी मां का मंदिर है। जगदलपुर से मंदिर की दूरी करीब 92 किलोमीटर है। सड़क मार्ग से दंतेश्वरी माता के मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। आप बस, कार, टैक्सी या बाइक से मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं। जगदलपुर से दंतेवाड़ा तक के सफर में प्रकृति के खूबसूरत नजारे देखने को मिलते हैं। सड़क के दोनों किनारे घने जंगल और दूर तक फैले पहाड़ सफर के आनंद को और बढ़ा देते हैं। रायपुर से जगदलपुर तक ट्रेन की भी सुविधा है। कोविड के कारण ट्रेन का संचालन अभी बंद है। वैस ट्रेन से जगदलपुर तक के सफर में पहाड़, जंगल के शानदार नजारे देखने को मिलते हैं। जगदलपुर में एयरपोर्ट की सुविधा है, जो राजधानी रायपुर और विशाखापट्टनम से जुड़ा हुआ है।

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