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इस पोस्ट में गरियाबंद जिले में स्थित जतमई घटरानी मंदिर की बात करेंगे। प्राकृतिक सुंदरता के बीच स्थित जतमई और घटरानी दो अलग-अलग मंदिर है। जतमई मंदिर मां जतमई को समर्पित है। इन्हें वन देवी भी कहा जाता है। मंदिर से लगा हुआ सुंदर जलप्रपात है। वहीं, घटरानी मंदिर जतमई मंदिर से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। घने जंगल और पहाड़ों के बीच मां घटारानी का मंदिर है। मंदिर के पास ही सुंदर वॉटरफॉल है, जिसकी धारा मां की चरणों को छूकर बहती है।
घने जंगल और पहाड़ी में स्थित जतमई और घटरानी मंदिर में एक समानता है कि दोनों मंदिर के पास खूबसूरत झरना और कुंड देखने को मिलते हैं। दोनों मंदिर पिकनिक स्पॉट के रूप में पूरे छत्तीसगढ़ सहित महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में भी में फेमस हैं। आइए जतमई और घटारानी मंदिर को थोड़ा विस्तार से जानते हैं।
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जतमई मंदिर, गरियाबंद
जतमई मंदिर चारों तरफ से घने जंगल से घिरा हुआ है। मंदिर अंदर और बाहर दोनों तरफ से बहुत सुंदर दिखता है। मंदिर में सीढ़िनुमा कई गुंबद बने हुए हैं। सफेद रंग में रंगे मंदिर के मुख्य भाग यानी गर्भगृह में मां जतमई स्थापित हैं। यहां स्थित वॉटरफॉल से मंदिर की खूबसूरती और बढ़ जाती है। वॉटरफॉल के नीचे में कुंड बना हुआ है। जतमई मंदिर के आस-पास कई और मंदिर हैं। इसमें दुर्गा मंदिर, काली मंदिर, शिव मंदिर, नरसिंह मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर प्रमुख है। शिव मंदिर को कुछ समय बनाया गया है। इसके गर्भगृह में शिवलिंग के साथ शिव प्रतिमा स्थापित है। मंदिर की दिवारों पर कई देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को उकेरा गया है।
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नाग गुफा, जतमई मंदिर
जतमई मंदिर से लगा हुआ नाग गुफा भी है। कहते हैं कि जतमई माता के रक्षक नाग इसी गुफा में रहते थे। वर्तमान में गुफा में एक साधु दिखते हैं जो यहां आने वालों को रक्षासूत्र बांधकर आशीर्वाद देते हैं। गुफा से कुछ दूरी पर बजरंगबली की विशाल प्रतिमा दिखाई देती है। प्रतिमा के कंधे पर राम-लक्ष्मण बैठे हुए हैं। प्रतिमा के बगल में विशाल गद्दा और गले में बड़ी सी माला है। जंगल के बीच स्थित इस प्रतिमा के आस-पास से पानी की धारा बहती है जो आगे जतमई मंदिर के पास और पहले छोटे-बड़े वॉटरफॉल में बदल जाती है।
वॉटरफॉल से कुछ आगे कुंड बना हुआ है यहां पर आप स्नान कर सकते हैं। कई पर्यटक आपको यहां स्नान करते हुए दिख जाएंगे। कुंड में ऊंची जगह से छलांग ना लगाएं। यह खतरनाक हो सकता है। बरसात के दिनों में वॉटरफॉल की खूबसूरती देखते ही बनती है। इस दौरान पानी का प्रवाह तेज हो जाता है, और गिरते वॉटरफॉल की आवाज कुछ दूर तक सुनाई देती है।
बरसात में बढ़ जाती है वॉटरफॉल की खूबसूरती
बरसात में वॉटरफॉल के आस-पास फिसलन बढ़ जाती है। ऐसे में सावधानी से चलें। मेन एंट्री गेट से अंदर आने पर मंदिर और वॉटरफॉल को देखने के लिए व्यू प्वाइंट बना हुआ है। यहां से वॉटरफॉल और मंदिर का सुंदर नजारा दिखता है। मुख्य गेट के बाहर कई स्टॉल लगे हुए हैं, जहां से आप प्रसाद और श्रृंगार की वस्तुएं खरीद सकते हैं। यहां से कुछ यादगार चीजें आप अपने घर ले जा सकते हैं। यहां आएं तो साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। किसी भी प्रकार के कचरे को डस्टबिन में डालें और यहां के नियमों का पालन करें।
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घटारानी मंदिर, गरियाबंद
घटारानी मंदिर घने जंगल के बीच पहाड़ी पर स्थित है। मां घटारानी प्राकृतिक रूप से निर्मित छोटी गुफा में स्थापित हैं जिसके ऊपर भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है। अलग-अलग रंगों में रंगे घटरानी मंदिर के पास ही सुंदर वॉटरफॉल है। वॉटरफॉल की एक धारा गर्भगृह से होकर बहती है जो माता के चरणों को स्पर्श करती है। नवरात्र में यहां ज्योतिकलश की स्थापना की जाती है। मंदिर में जाने के लिए दो रास्ते हैं। पहला रास्ता सीढ़ियों से होते हुए सीधे मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचता है। इस रास्ते में कुछ सीढ़ियां चढ़ने पर एक कुंड दिखाई देता है, जिसमें अकसर पर्यटक नहाते हुए दिखते हैं।
घटारानी में वॉटरफॉल के नीचे बना है कुंड
दूसरे रास्ते से पयर्टक सीधे मंदिर के ऊपरी हिस्से में पहुंचते हैं जहां वॉटरफॉल का ऊपरी हिस्सा मिलता है। यहीं से वॉटरफॉल नीचे की ओर गिरता है। नीचे जहां वॉटरफॉल गिरता है वहां पर कुंड बना हुआ है। घटरानी मंदिर आने वाले ज्यादतर पर्यटक कुंड या वॉटरफॉल की ठंडी जलधारा में स्नान जरूर करते हैं। पर्यटकों के अनुसार वॉटरफॉल में स्नान करने से सफर की थकान दूर हो जाती है और एक सुखद अनुभव होता है। बरसात के दिनों में वॉटरफॉल के आस पास फिसलन बहुत हो जाती है। इस मौसम में आएं तो सावधान से चलें।
वॉटरफॉल के नीचे श्रीकृष्ण गौ माता के साथ
घटारानी वॉटरफॉल के नीचे में श्रीकृष्ण गौ माता के साथ दिखते हैं। मां दुर्गा की प्रतिमा भी दिखाई देती है। वॉटरफॉल के ऊपर मुख्यधारा में शिवलिंग के दर्शन होते हैं। इन्हें घटेश्वरनाथ के नाम से जाना जाता है। मुख्य मंदिर के अलावा यहां हनुमान मंदिर, मां शारदाभवानी मंदिर मैहरवाली, दुर्गा मंदिर है। प्रवेश द्वारा से पहले कई स्टॉल लगे हुए हैं। यहां से आप अपनी श्रद्धानुसार प्रसाद और अन्य वस्तुएं खरीद सकते हैं। यहां से कुछ यादगार चीजें आप अपने घर ले जा सकते हैं। यहां आएं तो साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। किसी भी प्रकार के कचरे को डस्टबिन में डालें और यहां के नियमों का पालन करें।
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रायपुर से जतमई घटारानी मंदिर की दूरी
राजधानी रायपुर से करीब 75 किलोमीटर, बिलासपुर करीब 192 किलोमीटर, भिलाई से करीब 98 किलोमीटर की दूरी पर जतमई और घटारानी मंदिर स्थित है। जतमई और घटारानी मंदिर के बीच में करीब 25 किलोमीटर की दूरी है। कई शहरों से सड़क मार्ग द्वारा आसानी से जतमई घटारानी मंदिर पहुंचा जा सकता है। आप कार, टैक्सी या बाइक से यहां तक पहुंच सकते हैं। रायपुर से जतमई घटारानी तक की सड़क की स्थित अभी ज्यादा अच्छी नहीं है। जतमई घटारानी के लिए रायपुर रेलवे स्टेशन नजदीकी रेलवे स्टेशन है। दूसरे राज्यों से आने वालों के लिए रायपुर एयरपोर्ट की सुविधा है, जो मुंबई, दिल्ली, विशाखापट्टनम और कोलकाता से डायरेक्ट जुड़ा हुआ है।
गरियाबंद जिले में घूमने की जगहें
गरियाबंद जिले में घूमने के लिए कई और जगहें हैं। इसमें भूतेश्वरनाथ महादेव, राजीव लोचन मंदिर, कुलेश्वर महादेव, सिकासार जलाशय और उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व प्रमुख है। राजिम में राजीव लोचन मंदिर के पास से महानदी बहती है। राजिम में महानदी, सोंढूर और पैरी नदी का संगम देखने को मिलता है। संगम में कुलेश्वर महादेव का मंदिर भी है। संगम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहा जाता है। यहां पर पूरे छत्तीसगढ़ से लोग पिंडदान और अस्थि विसर्जन के लिए आते हैं।