Dudhadhari Math Mahamai Para Raipur | जानिए दूधाधारी मठ के बारे में | मठ में भगवान का साल में तीन खास मौकों पर होता दुर्लभ श्रृंगार

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इस पोस्ट में राजधानी रायपुर के महामाई पारा स्थित दूधाधारी मठ की बात करेंगे। मठ का इतिहास करीब 467 साल पुराना है। रायपुर की प्राचीन पहचान में दूधाधारी मठ का नाम शामिल है। मठ के महंत रामसुंदर दास के अनुसार मठ का निर्माण 1554 में हुआ। राजा रघुराव भोसले ने मठ के संस्थापक महंत बलभद्र दास के लिए इसका निर्माण करवाया था, जो भगवान हनुमान के बड़े भक्त थे। जिस तरह परिवार में वंश परंपरा चलती है। उसी तरह दूधाधारी मठ में शिष्य परंपरा का अनुसरण होता है। मठ में महंत रामसुंदर दास से पहले 8 महंत अपनी सेवाएं दे चुके हैं, जिसमें बलभद्र दास पहले महंत थे। महंत रामसुंदर दास मठ में पहले शिष्य हुआ करते थे। मान्याता के अनुसार वनवास के दौरान भगवान राम ने मठ में विश्राम किया था। 

दुर्लभ श्रृंगार में भगवान राम लक्ष्मण और माता सीता।


दूधाधारी मठ के अंदर यानी मठ प्रांगण में तीन प्रमुख मंदिर बने हुए हैं। इसमें सबसे बड़ा राम मंदिर है, जिसमें भगवान राम, लक्ष्मण और सीता माता के दर्शन होते हैं। पुरानी बस्ती के दाऊ परिवार द्वारा राम मंदिर का निर्माण करवाया गया था। दूसरा बालाजी मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण नागपुर के भोसले वंश द्वारा करवाया गया था। तीसरा मंदिर भगवान हनुमान का है, जो सबसे छोटा, प्राचीन और मठ का प्रमुख मंदिर है। भगवान हनुमान दूधाधारी मठ के इष्ट देव हैं। मठ के अंदर कई देवी-देवताओं के दर्शन होते हैं। 

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दूधाधारी मठ के अंदर विजयदशमी पर की गई सजावट।


साल में तीन बार होता है दुर्लभ श्रृंगार

दुर्लभ श्रृंगार में बालाजी भगवान।


दूधाधारी मठ में बने मंदिरों में स्थापित देवी-देवताओं का साल में तीन बार दुर्लभ श्रृंगार किया जाता है। इसमें रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी और दशहरा में दुर्लभ श्रृंगार देखने को मिलता है। रामनवमी में तीन दिन, कृष्ण जन्माष्टमी में चार दिन और दशहरा में 2 दिनों के लिए यह दुर्लभ श्रृंगार की भव्य झांकी नजर आती है। इसे देखने के लिए छत्तीसगढ़ सहित पूरे भारत से लोग दूधाधारी मठ आते हैं।    

दूधाधारी मठ में रामसेतु का पत्थर 

दूधाधारी मठ में रामसेतु निर्माण में लगा पत्थर भी देखने को मिलता है, जो आज भी पानी में तैर रहा है। मठ प्रांगण में एक प्राचीन कुंआ है। इसका इस्तेमाल आज भी किया जाता है। मठ चारों ओर से ऊंची दीवारों से घिरा हुआ है। यह देखने से किसी पुराने किले का जैसा है। दीवारों के ऊपरी हिस्सों में जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं। इसे देखकर लगता है कि मठ कि निगरानी के लिए ऐसा निर्माण करवाया गया होगा। मठ के अंदर बलभद्र दास जी की समाधी बनी हुई है। 

मठ के इष्ट देवता है भगवान हनुमान

भगवान हनुमान।


दूधाधारी मठ में अंदर जाने पर सबसे पहले छोटे-छोटे बने मंदिरों के दर्शन होते हैं। यह मंदिर एक सीध में बने हुए हैं जिनमें कई पद चिन्हों के दर्शन होते हैं। ये पद चिन्ह मठ में अपनी सेवाएं देने वाले महंत के हैं। इसके बाद मठ में इष्ट देवता का मंदिर है। जो भगवान हनुमान का है। इसके बाद भगवान राम का भव्य मंदिर है। राम मंदिर के बगल में बालाजी का मंदिर है। मंदिर में गणेश भगवान, राधा-कृष्ण के भी दर्शन होते हैं।

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मठ में छात्रावास, सुवधाएं फ्री में

दूधाधारी मठ में मंदिरों के अलावा एक छात्रावास भी बना हुआ है। इसमें छात्रों के रहने और खाने की सुविधा है, जो पुरी तरह से फ्री है। मठ में दो रसोईघर बने हुए हैं। इसमें एक सीता और दूसरा अनसुइया है। सीता रसोई में सुबह के समय का भोजन बनाया जाता है वहीं अनसुइया में शाम का। मठ में आज भी पुरानी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।

समाज के विकास में मठ का योगदान

महंत रामसुंदर दास के अनुसार मठ का योगदान समाज के विकास में भी अहम है। पूरे रायपुर शहर में पीने के पानी की सप्लाई जहां से होती है वह नलघर मठ की दान दी हुई जमीन पर बना हुआ है। रावणभाठा जहां हर साल विजयदशमी के दिन रावण दहन होता है वह मठ की ही जमीन है। वीआईपी रोड स्थित राम मंदिर भी मठ की जमीन पर बना हुआ है। रायपुर सहित प्रदेश के कई जिलों में शिक्षण संस्थानों का संचालन मठ द्वारा किया जाता है। 

दूधाधारी मठ की कहानी

राम मंदिर के गर्भगृह की साज सज्जा अद्भुत है।


किसी जमाने में जब महाराजबंध तालाब के आस-पास जंगल हुआ करता था। उस दौरान बलभद्र दास यहां एक छोटी सी कुटिया में निवास करते थे। उनका ज्यादातर समय यहां स्थित एक पत्थर को भगवान हनुमान मानकर उसकी अराधना में निकलता था। वो भगवान हनुमान का अभिषेक करने के लिए गाय के दूध का इस्तेमाल करते थे। अभिषेक के बाद वो उसी दूध का सेवन करते थे। ऐसा करने से बलभद्र दास दूधाहारी के नाम जाने जाने लगे। समय के साथ दूधाहारी की जगह दूधाधारी नाम प्रचलन में आ गया। और इस तरह मठ को दूधाधारी मठ के नाम से जाना जाने लगा।

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रायपुर रेलवे स्टेशन से दूधाधारी मठ की दूरी

रायपुर रेलवे स्टेशन से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर महामाई पारा में दूधाधारी मठ स्थित है। रायपुर शहर सहित पूरे छत्तीसगढ़ से सड़क मार्ग द्वारा आसानी से महामाई पारा स्थित दूधाधारी मठ तक पहुंचा जा सकता है। आप बस, कार, टैक्सी, ऑटो या स्वयं के साधन से मठ तक पहुंच सकते हैं। नए बने भाटागांव बस स्टैंड से दूधाधारी मठ की दूरी मात्र आधा किलोमीटर है। ट्रेन के माध्यम से भी रायपुर रेलवे स्टेशन तक पहुंचा जा सकता है, जहां से दूधाधारी मठ तक पहुंचने के लिए कई साधन उपलब्ध हैं। रायपुर में एयरपोर्ट की सुविधा है जो दूधाधारी मठ से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर है। अलग-अलग रूट से यह दूरी ज्यादा भी हो सकती है।

राजधानी रायपुर में घूमने की जगह

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कई जगहें हैं जहां आप पिकनिक या घूमने का प्लान बना सकते हैं। खारुन नदी के किनारे पर स्थित रायपुर शहर प्रदेश का सबसे बड़ा शहर है। यहां घूमने के लिए, स्वामी विवेकानंद सरोवर जिसे बूढ़ा तालाब भी कहते हैं, स्वामी विवेकानंद आश्रम, तेलीबांधा तालाब, गांधी उद्यान, महामाया मंदिर, राम मंदिर, शादाणी दरबार, इस्कॉन मंदिर, बालाजी मंदिर, बंजारी माता मंदिर, महाकौशल आर्ट गैलरी, गुरु तेग बहादुर संग्रहालय, नंदन वन जू, कैवल्य धाम, नया रायपुर, एमएम फन सिटी, महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय प्रमुख हैं।

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