Khallari Mata Mandir Mahasamund Chhattisgarh | खल्लारी माता मंदिर महासमुंद | जानिए खल्लारी माता मंदिर के बारे में | महासमुंद जिले में घूमने की जगह

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इस पोस्ट में महासमुंद जिले में पहाड़ी की चोटी पर स्थित खल्लारी माता मंदिर की बात करेंगे। प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर बागबाहरा में मां खल्लारी पर्वत की चोटी पर विराजित हैं। करीब 825 सीढ़ियां चढ़ने के बाद खल्लारी माता के दर्शन होते हैं। चढ़ाई का ज्यादातर हिस्सा खड़ी चढ़ाई के रूप में है। महाभारत के भीम से जुड़े कुछ साक्ष्य आज भी खल्लारी पहाड़ी पर मौजूद हैं। इसमें पांव के निशान, भीम चुल्हा, भीम का हंडा आदि प्रमुख है। इन्हीं साक्ष्यों के कारण खल्लारी पहाड़ी को भीमखोज के नाम से भी जाना जाता है।

मां खल्लारी मंदिर का एरियल व्यू।


पहाड़ी की चोटी पर मंदिर में स्थापित खल्लारी मां की प्रतिमा।


भीमखोज पहाड़ी में मां दंतेश्वरी गुफा, शेर गुफा, डोंगा पत्थर, भागीरथी, बटुक भैरव, गणपति बप्पा, खोखला पठार, बंजारा की श्रापित प्रतिमा, मां अन्नपूर्णा देवी, बजरंगबली की भव्य प्रतिमा (कई अवतार में), महर्षी वेदव्यास आदि के दर्शन होते हैं। नवरात्र में माता के दरबार में ज्योति कलश प्रज्जवलित की जाती है। यहां पर अखंड ज्योत के दर्शन भी होते हैं। श्री खल्लारी मातेश्वरी जगन्नाथ स्वामी मंदिर ट्रस्ट नवनिर्मित ज्योति गृह 14 सितंबर 1998 में शुरू हुआ।  

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मंदिर के आस-पास सकरे रास्ते  

खल्लारी मंदिर के आस-पास कई सकरे रास्ते देखने को मिलते हैं।


पहाड़ी की चोटी पर स्थित मां दंतेश्वरी गुफा, शेर गुफा, भीम पांव, भीम चुल और डोंगा पत्थर जाने के लिए सकरे रास्तों और विशाल पत्थरों के बीच से गुजरना होता है। पहाड़ी के नीचे में जगन्नाथ मंदिर, नीचे वाली खल्लारी माता और मां काली की भव्य प्रतिमा के दर्शन होते हैं। नीचे स्थित जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में हुआ था। नागर शैली में बने मंदिर रथ यात्रा के दौरान कई कार्यक्रम आयोजित होते हैं। 

खल्लारी मंदिर से थोड़ी दूरी पर डोंगा पत्थर

खल्लारी पहाड़ी की चोटी पर स्थित डोंगा पत्थर।


पहाड़ी की चोटी पर खल्लारी माता मंदिर से थोड़ी दूरी पर डोंगा पत्थर देखने को मिलता है। यह पत्थर को भीम की नाव भी कहा जाता है। 10 फीट ऊंचा और 20 फीट लंबा यह अद्भूत पत्थर छोटे नाव जैसा दिखाई देता है। साइज के अनुसार इसका गजब का बैलेंस देखने लायक है। यह विशाल पत्थर छोटे से पत्थर के ऊपर टिका हुआ है जिसके आगे गहरी खाई है। देखने से लगता है कि यह कभी भी नीचे की ओर गिर सकता है। पत्थर के पास भगवान राम लक्ष्मण और माता सीता के दर्शन होते हैं। खल्लारी माता के दर्शन को आएं तो इस पत्थर को जरूरत देखें।

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पहाड़ी की चोटी पर व्यू प्वाइंट

खल्लारी पहाड़ी की चोटी पर व्यू प्वाइंट बना हुआ है, जहां से भव्य नजारा दिखता है।


पहाड़ी की चोटी पर स्थित खल्लारी माता मंदिर के दूसरी ओर व्यू प्वाइंट बनाया गया है। व्यू प्वाइंट से बागबाहरा का शानदार नजारा दिखाई देता है। दूर तक फैले हरे भरे घने जंगल और पहाड़ मन को मोह लेते हैं। खल्लारी में श्रद्धालुओं की परेशानी को देखते हुए मंदिर ट्रस्ट द्वारा शासन से रोपवे की मांग कई सालों से की जा रही है। रोपवे के बन जाने से यहां श्रद्धालुओं को बहुत राहत मिलेगी। कम समय में लोग माता के दर्शन कर सकेंगे।

माता के दर्शन के लिए वेबसाइट शुरू 

मंदिर ट्रस्ट की ओर से वेबसाइट की शुरुआत की गई है।


घर बैठे भी आप मां खल्लारी के दर्शन और मंदिर को सहयोग राशि दान कर सकते हैं। श्री खल्लारी मातेश्वरी जगन्नाथ स्वामी मंदिर ट्रस्ट की ओर से वेबसाइट की शुरुआत की गई है। वेबसाइट में ऑनलाइन दान, प्रसाद, सहयोग राशि और मनोकामना ज्योत प्रज्जवलित करने की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। इसके माध्यम से तुरंत ऑनलाइन रिसिप्ट प्राप्त किया जा सकता है। वेबसाइट में मां खल्लारी मंदिर, खल्लारी पहाड़ी और खल्लारी के इतिहास, यहां का ऐतिहासिक महत्व एवं समस्त जानकारियां उपलब्ध कराई गई हैं। www.maakhallari.com और maakhallari.com नाम से वेबसाइट बनी हुई है। यहां क्लिक कर माता की वेबसाइट पर जा सकते हैं।

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खल्लारी मंदिर का इतिहास

खल्लारी मंदिर के पास शेर गुफा स्थित है। 


खल्लारी दर्शन बोर्ड के अनुसार ऐतिहासिक रूप से चौदहवीं शताब्दी में हयवंश दो शाखाओं में बंट गया। इसके बाद बड़ी शाखा की राजधानी रतनपुर में और छोटी शाखा की राजधानी रायपुर में स्थापित हुई। 1414 इस्वी प्राप्त शिलालेख के अनुसार हयवंश की कलचुरी शाखा के हरि ब्रह़्म देव राजा की राजधानी खल्लवाटिका खल्लारी में थी जो मृतकागढ़ के नाम से जाना जाता था। तत्कालीन मृतकागढ़ आदिवासी जमींदारों के आधित्व में रहा। राजा हरि ब्रह्म देव द्वारा शक्ति के रूप में खल्लारी के रक्षिका स्वरूप देवी खल्लारी माता शक्ति की आराधना कर मां खल्लारी की मूर्ति स्थापित की गई। 

खल्लारी मंदिर के संबंध में उपलब्ध जानकारी

पहाड़ी पर स्थित गुफा में मां दंतेश्वरी के दर्शन भी होते हैं।

खल्लारी मंदिर वेबसाइट से मिली जानकारी के अनुसार सालों पहले खल्लारी पहाड़ी पर एक छोटी सी गुफा में माता के ऊंगली के निशान मिले थे, जिसकी पूजा की जाती थी। गुफा की जगह पर 1940 में एक छोटे मंदिर का निर्माण हुआ। उसके बाद 1965 से 1970 के बीच मंदिर का जीर्णोद्वार हुआ। 2002 में इस जगह को पर्यटन स्थल घोषित किया गया। और पहाड़ी के ऊपर ज्योति भवन और विश्राम कक्ष का निर्माण किया गया। इसके बाद 2006 में फिर से मंदिर के जीर्णोद्वार का काम शुरू हुआ जो 2014 तक चलता रहा। इसमें पहाड़ी के नीचे से ऊपर तक कई काम हुए। कई श्रद्धालू जिन्हें पहाड़ चढ़ने में परेशानी होती है उनके लिए पहाड़ी के नीचे भी खल्लारी माता मंदिर का निर्माण कराया गया। इस मंदिर को नीचे वाली खल्लारी माता के नाम से जाना जाता है।

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चैत्र पूर्णिमा में लगता है मेला 

खल्लारी मंदिर के एरियल व्यू में मंदिर के आस-पास बड़ी-बडी चट्‌टाने दिखती हैं।


पुरानी मान्यताओं के अनुसार मां खल्लारी का आगमन महासमुंद के निकट ग्राम बेमचा में हुआ। इस संबंध में ऐसी किंवदंतिया प्रचलित है। ग्राम बेमचा से माता सोडसी का रूप धारण कर बाजार आया जाया करती थीं। उनके लावण्य रूप से वशीभूत बंजारा खल्लारी माता के पीछे पड़ गया। खल्लारी माता का पीछा करते हुए पहाड़ी मंदिर तक गया तदंतर देवी माता खल्लारी में विलोपित होने से पूर्व श्रापवश पाषण रूप में परिवर्तित हो गया। और वहां उसी पहाड़ी में माता निवास करने लगी। तब से देवी मां खल्लारी का यशोगान किया जाता है। चैत्र पूर्णिमा में यहां भव्य मेला लगता है। 
       

महासमुंद से खल्लारी माता मंदिर की दूरी

खल्लारी माता का मंदिर बहुत सुंदर बना हुआ है।


रायपुर से करीब 78 किलोमीटर और महासमुंद से करीब 23 किलोमीटर की दूरी पर बागबाहरा मार्ग में पहाड़ी की चोटी पर खल्लारी मां का मंदिर स्थित है। इस जगह को भीमखोज नाम से भी जाना जाता है। पहाड़ी पर भीम चुल, भीम पांव के निशान हैं। माता के दर्शन के साथ श्रद्धालू इन निशानों को भी देखने यहां आते हैं। सड़क मार्ग से खल्लारी माता मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है। बस, टैक्सी या अपने साधन से यहां तक की दूरी तय की जा सकती है। सड़क की स्थित की बात करें तो यह बहुत अच्छी स्थिति में हैं। रेल मार्ग में बागबाहरा स्टेशन खल्लारी मंदिर से सबसे पास स्थित स्टेशन है। दूसरे प्रदेशों से आने वालों के लिए रायपुर एयरपोर्ट की सुविधा है। यह मुंबई, दिल्ली, विशाखापट्‌टनम और कोलकाता से डायरेक्ट जुड़ा हुआ है।

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यहां आएं तो इन बातों का ध्यान रखें

मां खल्लारी के दर्शन के लिए जब भी आएं तो यहां आकर इन बातों का जरूर ध्यान रखें। पहाड़ी की चोटी पर माता के दरबार तक पहुंचे के लिए करीब 825 सीढ़ियां चढ़नी होती है। ऐसे में चढ़ाई के दौरान थकान बहुत होती है और प्यास भी बहुत लगती है। चढ़ाई के दौरान पानी की बॉटल जरूरी कैरी करें। ऊपर रास्ते में लंगूर और बंदर मिलते हैं। इनसे सावधान रहकर चढ़ाई करें। खाने की चीजों को बैग के अंदर रखें। यहां आने वालों से लंगूर या बंदर खाने-पीने की चीजों को छीनने का प्रयास करते हैं। यहां आकर साफ-सफाई का भी ध्यान रखें। कचरे को हमेशा डस्टबिन में ही डालें। 

महासमुंद जिले में घूमने की जगह

महासमुंद जिले में घूमने की कई जगहें हैं। इसमें श्वेत गंगा, मामा भांजा मंदिर, कोसरंगी के सिद्ध बाबा व स्वप्न देवी महामाया, बेमचा खल्लारी, सिरपुर, शक्ति माता हथखोज, बागबाहरा चंडी, बिरकोनी चंडी, गौधारा आदि प्रमुख स्थल हैं। यहां से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर राजिम शहर है जहां राजीव लोचन मंदिर, कुलेश्वर महादेव मंदिर और महानदी सहित तीन नदियों के संगम के दर्शन होते हैं। जैन मंदिरों के प्रसिद्ध चम्पारण यहां से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। परिवार या दोस्तों के साथ यहां का प्लान बना सकते हैं।

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