Bilaspur me ghumne ki jagh | मां महामाया मंदिर ऐतिहासिक है | मल्हार में बहुत कुछ है देखने को | अगस्त महीने में पर्यटकों के लिए खूंटाघाट हो जाता है खास

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न्यायधानी के नाम से जाना जाने वाला बिलासपुर शहर छत्तीसगढ़ का दूसरा बड़ा शहर है। रायपुर से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह शहर रेलवे के लिए पूरे भारत में जाना जाता है। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे का मुख्यालय बिलासपुर है। साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड का हेड ऑफिस भी बिलासपुर में है। यहां घूमने के लिए माँ महामाया मंदिर रतनपुर, ऎतिहासिक जगह मल्हार, खूंटाघाट डैम, देवरानी जेठानी मंदिर और कानन पेंडारी चिड़ियाघर खास हैं।

मां महामाया, रतनपुर।

मां महामाया मंदिर रतनपुर कैसे जाएं

बिलासपुर शहर से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर रतनपुर में सिद्ध शक्तिपीठ मां महामाया देवी का मंदिर है। 51 शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व है। पूरे छत्तीसगढ़ से श्रद्धालु माता के दर्शन को रतनपुर आते हैं। नवरात्र में यहां ज्योति कलश प्रज्जवलित की जाती है। मनोकामना पूरी होने, सुख-शांति और समृद्धि के लिए यहां बलि दिए जाने की प्रथा है। जानकारी के अनुसार मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में राजा रत्नदेव प्रथम ने कराया था। नागर शैली में बने मंदिर का मंडप 16 स्तंभों पर टिका हुआ है। गर्भगृह में माता की दुर्लभ साढ़े तीन फ़ीट की मूर्ति स्थापित है। मान्यताओं के अनुसार माता के पिछले भाग में माता सरस्वती की प्रतिमा है, जो विलुप्त मानी जाती है। मंदिर प्रांगण में एक ज्योत प्रज्वलित है जो 10 अप्रैल 1986 से लगातार जल रही है। यहां जाएं तो पंचमुखी महामृत्युंजय शिव मंदिर में शिवलिंग के दर्शन जरूर करें। महामाया मंदिर का बाहरी गेट भव्य बना हुआ है। इसके शीर्ष पर भगवान भोले विराजमान है। यहां सड़क मार्ग से जाया जा सकता है। नजदीकी स्टेशन बिलासपुर है। 

खूंटाघाट डैम से ओवरफ्लो होता पानी।

खूंटाघाट डैम कैसे जाएं

बिलासपुर शहर से करीब 42 किलोमीटर की दूरी पर खूंटाघाट डैम स्थित है। डैम के पास जंगल और पहाड़ हैं जो इसकी सुंदरता को चार चाँद लगते हैं। पिकनिक स्पॉट के रूप में यह जगह बहुत फेमस है। अगस्त के महीने में डैम से पानी ओवर फ्लो होता है। इस ओवर फ्लो को देखने के लिए हर दिन सैकड़ों लोग यहां जाते हैं। बरसात के दिनों में डैम को व्यू पॉइंट से देखने से यह बहुत खूबसूरत दिखता है। खूंटाघाट डैम नाम के पीछे एक कहानी है। कहानी के अनुसार जब डैम का निर्माण किया जा रहा था तब बांध में आने वाले जंगल को काटा नहीं गया। पानी भरने से पेड़ डूब गए जो बाद में ठूठ में बदल गए। इन्हीं ठूठ में अकसर नाव वाले टकरा जाते थे। ठूठ को खूंटा भी बोलते हैं। ऐसे में बांध का नाम खूंटाघाट प्रचलित हो गया। उस दौर में जब डैम का पानी सूख जाता था तो स्थानीय लोग पानी में बाहरी आई काली ठूठ को काटने की कोशिस करते थे। यह आसानी से नहीं कटता था। पानी में डूबा रहने के कारण यह ठूठ बहुत मजबूत हो गए थे। इस मजबूत ठूठ से लोग छड़ी बनाते और बनवाते थे। इसमें चांदी और पीतल की मूठ लगाकर रखते थे। आज भी स्थानीय लोगों के पास यह छड़ी मिल जाएगी, जिसे रखना वो अपनी शान समझते हैं। सड़क मार्ग से यहाँ आसानी से जाया जा सकता है। नजदीकी रेलवे स्टेशन बिलासपुर है।

मां डिंडेवरी देवी।

मल्हार डिंडेश्वरी देवी मंदिर कैसे जाएं

बिलासपुर से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर मल्हार डिंडेश्वरी देवी मंदिर स्थित है। बिलासपुर-रायगढ़ रोड में स्थित यह एक ऎतिहासिक जगह है। यहां डिन्डेश्वरी मंदिर के अलावा पातालेश्वर महादेव और देउर मंदिर है। इसमें डिंडेश्वरी माता को आस पास के लोग बहुत मानते हैं। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित माता की ऐतिहासिक भव्य प्रतिमा काले पत्थर की बनी है। यह 10वीं शताब्दी की बताई जाती है। मंदिर की ख़ूबसूरती की जितनी तारीफ की जाए कम है। मंदिर को कई रंगों के इस्तेमाल से सजाया गया है। मंदिर में कई कलाकृतियों का निर्माण भी हुआ है, जो बेहद आकर्षक है। मल्हार में ऎतिहासिक पातालेश्वर महादेव मंदिर सहित देउर मंदिर भी है। पातालेश्वर महादेव के आस पास प्राचीन अवशेषों के ढेर हैं। इसमें कई प्रतिमा हैं। पास ही खंडहर हो चुके एक मंदिर का अवशेष है जो किसी समय में भव्य रहा होगा। यहां चार हाथ वाली विष्णु की प्रतिमा खास है। इस जगह पर जैन धर्म के स्मारक भी हैं। देउर मंदिर में कलात्मक मूर्तिया हैं, जिसे देखकर प्राचीन समय की भव्यता का पता लगता है। इस जगह को सरकार ने संरक्षित घोषित किया है। यहां एक संग्रहालय है, जिसमें ऐतिहासिक प्रतिमाओं को देखा जा सकता है। इतिहास को करीब से जानने के लिए यहां जरूरी जाना चाहिए। यहां सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। मस्तूरी से यह करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से बिलासपुर रेलवे स्टेशन करीब है। 

ताला गांव में मंदिरों के अवशेष।

देवरानी जेठानी मंदिर कैसे जाएं

बिलासपुर से करीब 28 किलोमीटर की दूरी पर ताला गांव स्थित है। मनियारी नदी के तट पर स्थित इस गांव की गिनती प्रमुख पुरातात्विक स्थलों में होती है। खुदाई में यहां चौथी से पांचवी शताब्दी के मंदिर मिले हैं। इन्हें ही देवरानी और जेठानी मंदिर कहते हैं। देवरानी-जेठानी मंदिरों की खोज अवशेषों के रूप में से की गई है। इसमें देवरानी मंदिर की स्थिति अच्छी है। यहां छठवीं शताब्दी की रूद्र शिव की प्रतिमा भी मिली है। प्रतिमा में विभिन्न जीव जंतुओं के मुख बने हुए हैं। यह 15 सौ वर्ष पुरानी बताई जाती है। यहां कई और मंदिर हैं। राम मंदिर और जलेश्वर महादेव मंदिर भी यहां पर स्थित है। पर्यटकों को ध्यान में रखते हुए यहां पास में ही एक बड़ा गार्डन बनाया गया है जो पिकनिक के लिए बहुत उपयुक्त जगह है। मनियारी नदी के तट पर बोटिंग की सुविधा भी पर्यटकों के लिए उपलब्ध है। ऐतिहासिक रूप से फेमस इस जगह को देखने पूरे भारत से पर्यटक यहां आते हैं। यह जगह अमेरी कापा के नाम से भी प्रसिद्ध है। यहां सड़क मार्ग से जाया जा सकता है। नजदीकी रेलवे स्टेशन बिलासपुर है।

कांनन पेंडारी चिड़ियाघर का एंट्री गेट।

कानन पेंडारी चिड़ियाघर कैसे जाएं

बिलासपुर मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर सकरी के पास कानन पेंडारी चिड़ियाघर स्थित है। चिड़ियाघर में शेर, बाघ, दरियाई घोड़ा, सांभर हिरण, सफ़ेद हिरण, चीतल, सियार, हॉग डिअर, जंगली सूअर, नील गाय, पक्षियों की कई वैराइटी, सांपों की कई वैराइटी सहित कई जीव-जंतु देखने को हैं। चिड़ियाघर के अंदर अलग से मछली घर है, जिसमें मछलियों की कई वैराइटी देखने को मिलती है। चिड़ियाघर सुबह 9 बजे खुल जाता है। यह सोमवार को बंद रहता है। 3 से 12 वर्ष के बच्चों का 10 रुपए और बड़ों का 20 रुपए टिकट चार्ज है। यहां सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। बिलासपुर से सिटी बस चलती है। नजदीकी रेलवे स्टेशन बिलासपुर है।  


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